पंडित जवाहरलाल नेहरू की रोचक कहानी की सुनिए जुबानी

पंडित जवाहरलाल नेहरु के बारे में तो आप सब जानते होंगे कि उन्होंने भारत देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।

पंडित जवाहरलाल नेहरू की रोचक कहानी की सुनिए जुबानी
पंडित जवाहरलाल नेहरू की रोचक कहानी की सुनिए जुबानी

पंडित जवाहरलाल नेहरु के बारे में तो आप सब जानते होंगे कि उन्होंने भारत देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। नेहरू जी का जन्म 14 नवम्बर 1989 में प्रयागराज में हुआ था, नेहरू जी अपने बाल्यकाल से ही बहुत शरारती थे, नेहरू जी बच्चों से बहुत ज्यादा प्रेम करते थे इसलिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। आपको बता दें कि जवाहरलाल नेहरू ने एक पत्र महात्मा गांधी को सन् 1933 में लिखा था, उस पत्र में लिखा गया था कि जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे धर्म के प्रति मेरी नजदीकी भी कम होती जा रही है साथ ही नेहरू ने साल 1936 में अपनी आत्मकथा में लिखा कि संगठित धर्म मेरे लिए हमेशा अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और शोषण का रूप रहा है। इन सबका एक ही मतलब बनता है कि नेहरू का व्यक्तित्व धर्मनिरपेक्ष पर हमेशा के लिए ही टिका रहा। 

नेहरू जी को क्यों था मुस्लिम समाज से प्रेम?

नेहरू की आत्मकथा भारतीय राजनीति में उस समय का खुलासा करती हैं, जब वे विदेश में पढ़ रहे थे, उसी अवधि में उनके द्वारा अपने पिता के लिए लिखे गए पत्रों में भारत की स्वतंत्रता की रुचि का पता चलता है। भारत लौटने पर नेहरू ने सबसे पहले एक वकील के रूप में बसने की कोशिश की थी, हालांकि अपने पिता के विपरीत उन्हें अपने पेशे में केवल अपमानजनक रुचि थी और उन्हें कानून का अभ्यास या वकीलों की संगति पसंद नहीं थी। बता दें, कि वी शंकर, सरदार पटेल के सेक्रेटरी थे, जिन्होंने अपने किताब में लिखा है, कि कथित पीड़ित मुसलमानों की चिंता में नेहरू जी बहुत परेशान होते थे। दरअसल नेहरू ये मानते थे, कि अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुसलमान कांग्रेस नेता के रूप में उनकी एक विशेष जिम्मेदारी है, देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा देश की धर्मनिरपेक्षता की परीक्षा है। इसलिए उनके मन में मुस्लिम समाज के प्रति प्रेम था।